बेजुबान तू है पर
जुबान मेरी
सुनता नही कोई
हो हादसे वो
जिंदगी के
पर अब मेरे लिए
रोता नही कोई
रंजोगम क्या बया करू
खुलकर भी मिलता नही कोई
होकर अपना भी
अपनापन कोई
दिखलाता नही
दोस्त इसलिए
तुझी से राज –ए- दिल
अपने बयाँ कर
बेदिली के दिनों को ओढ़ता हूँ
उन दिनों को याद कर
आंखे कभी भर आती हैं
पर आज मेरी कीमत
मेरे ही घर में कुछ नही रह गई
गिनते थे जो मुझे
अपनी खुशिया की
वजह में वो भी
आज बेतकल्ल्लुफ़ी
का आलम ओढ़ लाये हैं
और आज मुझे अकेले
इस ग़मगीन मोड़ पर
छोड़ आये हैं
पर मैं
उनको छोड़ नही पाया
क्योकि उनके मानिन्द आज
भी वफ़ा रखता हूँ
बाप हूँ
बाप का दिल रखता हूँ
द्वारा – अमित तिवारी “शून्य’
03.01.2021
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