पथ की बाधा
स्वरचित कविता
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘
चलते हुए जीवन-पथ
की राह पर,
रह जाय जो जीव
रूका सा ठहरा सा ।
डरा और आनन्द के
अतिरेक में भटका सा,
श्लेष सा अशेष सा
सहसा पर थोडा सा ।
अडा हुआ सा
निर्भीक सा खडा हुआ सा।।
तो क्या बिगाड
लेगी उस निर्भीक का ,
उसके पथ की बाधा।।
बढते हुए उत्थान
के निज कयास,
कर्तव्य पथ पर
चलने की पुनः आस।
उत्कर्ष करने का
पुनः-पुनः उसका सफल प्रयास।।
बाधा का ही बाधक
बन सकेगा,
हां वही योद्धा
जीवन युद्ध की परिणिति करेगा।
सह सकेगा जीवन पथ
के वार,
कर सकेगा वही उन
बाधाओं पर पलटवार।।
जो नितांत और
निरंतर हो रहेगा,
जो ना थकेगा और
ना ही थमेगा।
वही पथ की बाधा
को हटा,
निज पथ को
निर्बाध करेगा।
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘
ग्वालियर म प्र
दिनांक १५ जनवरी २०२१
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