बुधवार, 13 जनवरी 2021

एक ख्वाब अधूरा सा स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘

 

एक ख्वाब अधूरा सा

 

स्वरचित कविता

द्वारा अमित तिवारी शून्य

 

एक देखा सपना जो मैने अपना सा,

एक ख्वाब सुहाना मेरा सा,

पर हो न पाया पूरा वो,

रहा हमेशा एक ख्वाब अधूरा सा,

रहा हमेशा यादों के अस्तबल में,

दब कर थोडी ठिठुरन से,

अकिंचन मेरे मन में,

टूटा वो आंसू बनकर,

एक ख्वाब अधूरा सा,

रहा घिरा सा रहा डरा सा,

निस्तेज हुआ वो होकर भी,

मेरे मन का सच्चा सपना,

टूटा उसके खोने पर मैं,

गिर उठा फिर चलता,

रहा, तो क्या हुआ,

निज स्वप्न जो टूटा,

नया फिर गढ़ लूंगा,

अब एक ख्वाब जो,

देखा उसको पूरा करके ही,

दम लूंगा,

पूरा करके ही मैं दम लूंगा।

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

दिनांकः 13 जनवरी 2021

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