चित्र आधारित
स्वरचित मौलिक कवित्त (अतुकांत )
द्वारा : अमित तिवारी “शुन्य”
ग्वालियर , म.प्र.
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आज जो देखा मैंने, मेरी गुडिया को
बिटिया को खेलते उसकी गुडिया से
उसको हुआ एहसास की जीवन गुड़ियों
का है संसार, और मुझे की वो तो मेरी गुडिया है
पर जब झांक के देखा उसकी गुडिया का घर
पाया उसके अन्तेर्मन में ममत्व का कुछ भाव
रखा उसने अपनी गुडियों का नाम पिंकी पारो
और अलबेले चुलबुले से अंग्रेजी के कुछ नाम
जानता हूँ की दौर नहीं अब शेष बचाया हमने
बत्तोबाई की गुड़ियों का, तो अब मेरी गुडिया
खेले बार्बी के साथ पर आज भी रहती वो
भारत की ही गुडिया रखती निजता में भी
भारत की लाज
द्वारा : अमित तिवारी “शुन्य”
ग्वालियर , म.प्र.
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