सब नैसर्गिक
है
स्वरचित
मौलिक
अतुकांत
कवित्त
ग्वालियर , म.प्र. 16.08.2021
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सब हैं नैसर्गिक
पेड़ वन्यजीव और हवा भी
सब हैं नैसर्गिक
नदियों का जल सागर अमर भी
सब हैं नैसर्गिक
सूरज व चंदा उगता और डूबता है
सब हैं नैसर्गिक
दिवा और निशा आया जाया करें
सब हैं नैसर्गिक
कोपलें हरि दूर्वा पर ओस
सब हैं नैसर्गिक
कल-कल सा जल ठंडी वो बयार
सब हैं नैसर्गिक
फलते पलते से वृक्ष और जीव
सब हैं नैसर्गिक
ये वसुंधरा मातृशक्ति प्रिया
सब हैं नैसर्गिक
किंतु
छदम अहंकार से छला
सबको
जिसने वो मनुष्य
क्यों
करता गया प्रकृति के खिलाफ कृत्य
अप्राकृतिक
और अक्षम्य से
द्वारा
: अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर
, म.प्र.
16.08.2021
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