लघु कथा :
विश्वास
स्वरचित
लघुकथा (मौलिक)
ग्वालियर
, म.प्र.
आज अनिल
कई सालों की मेहनत के बाद अपनी पीएचडी थीसिस और रिसर्च पेपर को कम्पलीट करने जा
रहा था | अनिल आज कई सालों में पहली बार बहुत खुश दिखाई दिया था | उसने मानो कलम,
किताब, जर्नल , लैपटॉप या कि पुरानी थीसिस के अलावा कुछ और दीखता भी कहाँ था ! यहां तक कि वह अपने आप को भी भूल सा ही गया था | इस रिसर्च और उस पर आधारित शोध पत्र को भी
रेपुटेड जर्नल में छपवाने का पड़ाव भी मानो उसने प्राप्त कर ही लिया हो जैसे; अज वो
अपने रिसर्च वर्क को लेकर अपना काम पूरा
कर चुका था | इधर रिसर्च ही जैसे उसके लिए
जीवन का दूसरा पर्याय नाम बन गई हो जैसे ! लेकिन आज उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था |
बड़ी श्रद्धा और खुशी से उसने अपने पीएचडी गाइड सर को फोन लगाया | वह उम्मीद तो यही
कर रहा था की गाइड साहब उसका फोन नहीं उठाएंगे लेकिन वर्मा सर ने दूसरी घंटी पर ही
फोन उठा लिया | चहकती आवाज़ में अनिल ने अपनी थीसिस और रिसर्च पेपर पूरी हो जाने की
खुश ख़बर, औपचारिक चर्चा उपरांत प्राथमिकता पर की ; वर्मा सर का रिस्पांस भी ठीक- ठीक ही लगा | उन्होंने अपने स्कॉलर यानी अनिल को रिसर्च पेपर
उन्हें ईमेल पर भेजने को कहा | अनिल ने सर के विश्वास में पेपर उनकी प्रतिक्रिया
के लिए ईमेल से भेज दिया | समय बीतता गया
कुछ महीने बाद अपनी थीसिस जमा करने की औपचारिकता में सेंट्रल लाइब्रेरी में बैठा
कुछ शोध पत्रिकाएँ पलट ही रहा था | तभी
अचानक उसकी नजर इंडेक्स को पलटते हुए उसी टाइटल के पूरे शोधपत्र पर पड़ी जो मूलतः
अनिल ने लिखा था, जिसे राय मशविरे के लिए उसने वर्मा साब को दिया था ; जिसके ओथर के
तौर वहां वर्मा सर और उनकी बेटी ज्योति का
था | यह देख कर वह मन ही मन उसके साथ हुए अविश्वास की घोर चिंता में डूब गया | आज
उसका विश्वास गुरु- शिष्य परंपरा से हमेशा के लिए हट गया उसका विश्वास आज हताहत हो
गया |
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर , म.प्र.
24.08.2021
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