गुरुवार, 12 अगस्त 2021

" एकांत और एकाकीपन का अंतर” आलेख : द्वारा अमित तिवारी सहायक प्राध्यापक भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान ग्वालियर

 

“एकांत और एकाकीपन का अंतर”

आलेख :द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान ग्वालियर

 

जीवन संदर्भ में यूं तो हर समय मनुष्य अकेला होता है; किंतु नैसर्गिक और मनोवैज्ञानिक सत्य यह भी है कि अकेला होकर भी मनुष्य कोई अत्यंत आवश्यक रूप से एक ऐसी समष्टि की आवश्यकता होती है जिसमें व्यक्ति अपने उत्थान और सामाजिकता के नए वितानों को गढ़ता है इन सरोकारों को रखते हुए अपने जीवन को सार्थक व संपन्न बना लेता है | यही मानवीय जीवन का सामाजिक अभीष्ट होता है यद्यपि चिंतन परक  दृष्टिकोण से व्यक्ति को सामाजिक और पारिवारिक जीवन में रहते हुए ऐसे नितांत एकांत की आवश्यकता हमेशा रहती है; जिसमें उसके व्यक्तित्व और कृतित्व को गढ़ने के लिए एवं उसके स्वयं के आकलन के लिए समय विशेष की परिपाटी की आवश्यकता होती है जिसे अत्यंत आवश्यक व्यक्तिगत समय और तात्कालिक सामाजिक शून्यता अर्थात एकांत की संज्ञा दी जाती है |  यु तो मानवीय दृष्टि में हर व्यक्ति अपने स्वभाव अनुरूप इसकी समयोचित उपलब्धता के दायरे में रहता है किन्तु इसे मानसिक तौर पर आतंरिक संवाद से भी जोड़ा जाता है | एलबर्ट ह्यूस्टन जैसे विद्वानों ने इसे बड़े संक्षिप्त भेद के तौर पर प्रदर्शित किया है | जिसका फर्क एकांत और एकाकीपन में सामान्यतया उद्घाटित होता है | एकांत व्यक्ति के उत्थान और आध्यात्मिक उन्नति के अनुशीलन के लिए एक नीव का कार्य करता है; वहीँ एकाकीपन व्यक्ति के मन मस्तिष्क और उसके सामाजिक पतन के साथ-साथ अवसाद की अभिव्यक्ति का प्रारंभिक बिंदु है | अकादमिक परिपेक्ष्य में कहें तो इसे मानसिकता का सामाजिक सामंजस्य से कटकर शून्य व नकारात्मक होने की परिपाटी के सन्दर्भों में समझा जाता है |

उपरोक्त वर्णन द्वारा एकांत और एकाकीपन का सूक्ष्म अंतर क्रमशः मनुष्य के व्यक्तिगत व सामाजिक जुड़ाव व कटाव के सन्दर्भ में समझा जा सकता है, हालांकि यह बहुत सूक्ष्म अंतर एक महीन सीमा रेखा द्वारा ही परिभाषित होता है।

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान ग्वालियर

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