सखा
स्वरचित अतुकांत कविता
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
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कृष्ण कथ्य
जांच लूं जरा सा |
उसके पथ पे
मैं डिगू जरा सा |
क्यों ना उससे
जा मिलूं मैं; हूँ डरा सा |
सोचता हूँ मन से
वो सखा मेरा प्यारा सा |
क्या लगेगा रानियों को
जाना, वहां मेरा कुछ बुरा सा |
कि अकिंचन मैं हूँ
और वो सम्राट इस वसुधा का |
जानकार वो क्या सोचेंगे
मैं हूँ शर्मिंदा जरा सा |
तू मेरा बाल सखा है
फिर से दे जीने की दिलासा |
मैं तेरा अकिंचन सुदामा
हूँ तेरे निज नेह का प्यासा सा |
हाय कैसी बिडम्बना
मन तो मेरा तुझी में रमा सा |
पर क्यों तुझ बिना श्याम
क्यों लगे की मैं हारा सा |
हे सखा मुझे पास बुला
दे दो मुझको तुम दिलासा ||
द्वारा: अमित तिवारी “शून्य”; ग्वालियर , म.प्र.
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