डोली बदल की
एक स्वरचित अतुकांत कविता
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
अम्बर पर छाई एक अद्भुत परछाई |
जो मैंने अंकों देखी डोली बादल की ||
मन में उमड़ आई एक दिलासा भाई |
जो मैंने देखी डोली बादल की ||
थिरकन बदली धड़कन आई |
जो मैंने देखी डोली बादल की ||
मन से गर्मी का राग भी छूटा गई |
जो मैंने देखी डोली बादल की ||
आस पास अब हरियाली ही छाई |
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
05.08.2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें