पहचान: एक लघु कथा
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द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’
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बारहवी के बाद आलोक को अपनी पहचान एक इंजीनियर के तौर पर बनाने की इच्छा शायद इतनी तीव्र थी कि वो बारहवी के इम्तिहान के साथ -साथ आई आई टी की तैयारी चुपचाप करता रहा और काम्प्टीशन के तगडे दौर में बिना किसी कोचिंग आदि के भी आई आई टी में एडमिशन का मन बनाया । हालाकि यह यात्रा आसान नही थी इस दुनियां में हमेशा की तरह लोग उसका मनोबल गिराने और उसे यह कहकर, ‘कि पहले बारहवी तो पास कर लो.... इंजीनियर तो बनते रहोगे’ से पीछे नही हटे लेकिन आलोक भी मन का पक्का सबकी बातें मानो उसने सुनी ही न हो और अपने ध्येय पर अडिग बना लड़ता रहा वो अपने आप से अपने प्रिय विषयों गणित,रसायन और भौतिक शास्त्र के अनसुलझे पहलुओं को सुलझाने में, चूंकि उसमे उसका एक मानसिक सुख था। शायद वो इंजीनियर बनने के लिए ही पैदा हुआ था। जुलाई का महीना निकला ही था, 13 तारीख थी और बारहवी के इम्तिहान के परिणाम आने थे सुबह कोई 10 बजे होगे बाबूजी हाथ मे जलेबी का थैला लिए अखबार थामे घिघियाते से चीखते चले आ रहे थे मानो उनकी ख़ुशी का कोई पारावार न हो पता चला आलोक बारहवी में प्रथम श्रेणी में पास हुआ है और अखबार के पहले पन्ने पर उसके बोर्ड टॉप करने का सन्देश भी छपा है। सुनकर माताजी (दयावती) की आखे छलछला आईं लेकिन आलोक को कोई बडी ख़ुशी न मिली हो जैसे उसे तो 22 जुलाई का इंतजार था। अगला हफ्ता भी जल्द बीत गया। 21 जुलाई की रात को बाबूजी के सिरहाने आकर आलोक बोला बाबूजी; ‘‘अगर हमार सिलेक्सन होई जाए तो तोकर पास फीस खातिर पैसा तो होंही न ’’ । बाबूजी ने आलोक की आंखों मे देखकर बस आशा भरी निगाहों से हामी भर दी । रात भर दोनों बाप बेटे मानो सुबह का इंतजार कर रहे हों। सुबह के 10 बजे थे कि घर का टेलीफोन बजा बाबूजी फोन उठा कर सामने की आवाज को बडी गहराई से सुन रहे थे न जाने उस आवाज ने क्या कह डाला हो कि शर्मा जी (बाबूजी) आंखों से आंसू बह चले । घिघियाती आवाज में आंसुओं और ख़ुशी के साथ आलोक को बुलाया और कहा कि ‘बिटुवा मो का दो दिन दै दे तौहार फीस जमा करे खातिर !‘ आलोक ये शब्द सुनकर बहुत खुश मगर रुंआ सा हो गया, सारे शहर में आलोक की अब एक नई पहचान बन गई थी ‘पहचान’
इंजीनियर बनने की।
द्वारा ‘अमित तिवारी शून्य‘
दिनांक - 25 अगस्त 2020
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