बुधवार, 26 अगस्त 2020

तनय /सुत द्वारा अमित तिवारी "शून्य''

 

तनय/ सुत

अतुकांत  स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’  

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फैला था नीर क्षीर विकट भू धरा पर,

ढूढते हुए पृथ्वी के तनय मानव को ,

सोचा गया था होगा आज्ञाकारी सुत,

विकराल रूप जब धरा, तब धरा को हिला दिया,

खुद की हस्ती के लिए माँ के आशीष को मिटा दिया,

तनय विनय को छोड कर यूं पातकी हो गया,

सृष्टा की सृष्टि को अपनी कुदृष्टि से मिटा दिया,

हाय तनय तूने तो गजब ही ढा दिया,

जंगल काटे, नदियां लूटी यूँ सत्ता किया पर अधिकार,

ऐसा पा तनय, धरा अवनी तक करती खुद को धिक्कार,

आज समय आया है जब उद्दण्ड को दण्ड दिया जाएगा,

माँ होकर भी फाड कलेजा , इस निज सुत का तर्पण किया जाएगा

 

स्वरचित

द्वारा अमित तिवारी ‘शुन्य’

28.08.2020

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