बुधवार, 19 अगस्त 2020

लज्जा -शर्म - हया की बानगी

 लज्जा/ शर्म/ हया


        द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’


‘लज्जा- लाज- लजाई’  सी होती, 

अगर तुम कुछ शर्मायी सी होती, 


हया कि हीनता, तुम पर भारी न होती,

गर शारदे तुम यूं पिता की प्यारी न होती,


दर्द को पाल कोख में मां न होतीं,

गर प्रणय को कुमुद मान तुम न सेतीं,


हया की वेदना शर्म के जाल खोती,

प्रिये तुम वरन के वास्ते बनी होती,


शर्म’ शब्द की व्यंजना क्या करूं मैं तुम्हे,

जन्मदात्री तो हो अंबिका हो तुम्हे,


हया को ओढ़ कर तुम नायिका बन रही,


संवारा है पथ शारदा बन रही,


लाज के नाम का नापकत्व तुमने तोड़ा,


प्रणय की कला में मिलन गुण को छोड़ा,


‘शर्म धर्म है'  तेरा,

लाज है आवरण

' हया की वन्दगी है तेरी जिंदगी’ 


द्वारा अमित तिवारी 'शून्य'

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...