"गीत कोई
गुनगुनाओ”
एक स्वरचित
अतुकान्त कविता
द्वारा अमित
तिवारी ‘शून्य‘ ग्वालियर म.प्र.
मेरे दोस्त तुम क्यों दुखी हो,
जरा सा तो तुम मुस्करा दो,
दिल की कोई बात छेडो,
खुलकर कोई गीत गुनगुनाओ।।
बहुत हार देखी
है तुमने मगर,
क्या खुद से हार जाओगे,
ठहरो
ज़रा सा फ़लक पर,
विजय
श्री का गीत कोई गुनगुनाओ।।
महकता
है वो आंगन, जो बस
तुम दिल की तमन्ना भर खिला लो,
बहुत
डर के फ़लसफ़े हैं पाले,
अब निडरता का गीत कोई गुनगुनाओ ।।
स्फटिक
सी चमकती है दुनिया,
बडे आर्कषण, यहॉ पर हैं भारी,
ना
समझो खुद को तमस तुम,
सतोमय सरस गीत कोई गुनगुनाओ ।।
अमित तिवारी
‘शून्य‘
ग्वालियर म.प्र.
दिनांक-
१४.०७.२०२१
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