स्वरचित लघु कथा
द्वारा :अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर , म.प्र.
शीर्षक—अनुभूति
वंदना के पैरों तले से मानो जमीन ही
निकल गयी हो जैसे, जब उसे अकाउंटेंट से पता चला; कि कल से उसे नौकरी पर आने के लिए
मना कर दिया गया है ; हालाँकि मुस्कराते हुए यह बात ऐसे कही गयी की दो तीन महीनों के
लिए प्रोजेक्ट ससपेंड हुआ है, इसलिए आपको अभी मना कर रहे हैं ..फिर शायद तीन -चार
महीने में फिर से याद करेंगें | पर न जाने इस बुरी खबर ने वंदना को; जो घर में एक
मात्र कमाने वाली थी को ...जैसे चिंता के गहरे सागर में डाल दिया हो | लेकिन मन ही
मन उसे अनुभूति हो आई की जरूरत के समय मिली इस नौकरी और इतने अच्छे ऑफिस और मैनेजर
सर ( रमेश) जो उसे हमेशा एक बड़े भाई की तरह हर समय काम और उसके प्रति उसके रवैये के
लिए हमेशा समझाते थे ....उनकी सारी बातें याद आ रहीं थी ....और उसे अनुभूति हो
आई की कैसे उसने अपने गलत रवैये और आराम परस्ती से कोरोना काल में मिली एक बेहद
अच्छी नौकरी जो न केवल उसके परिवार का इस कठिन समय में सहारा था; को खो दिया बल्कि
आज उसने रमेश जैसे बड़े भाई सरीखे एक नेक प्रोफेशनल की पोजीशन को भी चोट तो पहुंचाई
ही थी ...जो कि अक्सर उसे बहुत स्पष्टता लेकिन
मर्यादित शब्दों में वो हमेशा कहते कि “ बेटा तुम काम के प्रति ...थोडा
जिम्मेदारी तो रक्खा करो ...और समझो शायद इस समय में इतनी अच्छी नौकरी जो मिली है
उसकी क़द्र करा करो ..” इस अचानक गिरी गाज़ के लिए उसे यकीनन समझ आ गया की
उसने क्या कुछ गलतियाँ कर दीं ... अफ़सोस आज इस दुखद समाचार ने उसे अनुभूति दिला ही
दी कि उससे क्या चूक हुई ....और क्यों और कैसे उसने ... शायद आसानी से मिली नौकरी
के मायने अपनी नादानियों ....जैसे ऑफिस आवर्स
में दोस्तों को लम्बी - लम्बी फ़ोन कॉल करना, ...फाइलों को समय पर न निपटाना और हर
समय काम को टालते रहना , सीनियर अफसर की बातें इधर से उधर करना और उनके दिए काम न
करना ..सब कुछ बीते एक साल ...का वो हर एक
वाक्या... इंटरव्यू से लेकर नौकरी के इस
पल तक की सारी अनुभूतियाँ ...मगर अफ़सोस अपनी गलतियों की सच्ची अनुभूति उसे देर से
और नौकरी गँवा कर ही हुई |
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