''कला
और साहित्य का जीवन में महत्व''
आलेख
द्वारा
अमित
तिवारी
सहायक
प्राध्यापक
भा.प.या.प्र.सं.
ग्वालियर
मानव जीवन एक बहुआयामी जीवन परिदृश्य है और जीवन की सार्थकता
प्रामाणिक तौर पर कला, साहित्य और उससे सृजित आनन्द के ध्येय को ही मानव जीवन का अभीष्ट माना जाता है। जिन्दगी
सपने अनाहत प्रकम से कला व साहित्य सम्मत हो जीवन की जीवंतता का ध्येय गढ़ती है।
कला और साहित्य जीवन के विकास प्रक्रम को प्रगाढ़ता और स्तरीयता की ओर ले जाने
वाले दो अमिट जीवन प्रतीक स्वरूप हैं| जिसे सांस्कृतिक तत्वों के तौर पर परिभाषित
किया जाता है। सृष्टि द्वारा मनुष्य को दी गई दृष्टि और उसकी व्यष्टि से व्यक्ति
आत्मोत्थान और विकास के नवीन शीर्ष तलाशता आया है, कला वैविध्य की बात की जाय
तो यह सहज स्पष्ट होता है कि कला व साहित्य जीवन दर्शन को और जीवन शैली को नए मानदण्ड
में गढ़ती हुई, पीढि़यों को प्रभावित कर सकने का माद्दा रखती है और सृजन शील व्यक्तियों
के मन मस्तिष्क से होती हुई विकास के नवीन वितान गढ़ती है।
पारंपरिक तौर पर यदि देखा जाए तो कहा
जा सकता है कि भारतीय कला और साहित्य ; सृजन की उत्तान आसंधि पर पहुंच
शीर्षस्थ स्तरों से होती हुई वैविध्य प्रकारों की परिपाटी में पहचाने जाने लगी
है। कलाओं को अनेको रूपों यथा- प्रदर्शित कला, स्थापन कला,
लेखन,
नृत्यकला, चित्रकला, गायन, वादन, संगीत, लोक कला के साथ-साथ साहित्यिक कृतियों जिनमें काव्य, महाकाव्य,
उपन्यास , कहानी, कथा, लघुकथा और दर्शन व साहित्य आधारित अनेकानेक परिदृश्यों का समागम
जीवन की महत्ता को न केवल संपूर्णता से भरता है वरन् उसे और अधिक शक्तिशाली और
संवदेनशील , प्रखर, विन्यस्थ और परिपूर्ण बनाता है।
द्वारा अमित
तिवारी
सहायक
प्राध्यापक
भा.प. या. प्र.
स.
ग्वालियर
दिनांक - 15
जुलाई 2021
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