चित्र आधारित
रचना
अतुकांत कविता
द्वारा अमित तिवारी शून्य
बचपन के दिन भी
अजीब थे
आज याद मुझे आई
मेरे बचपन के
दिन की
थोड़ी सी आंख भर
आई
फिर मन में एक
विचार उठा
जीवन बड़ा होने
को था फिर भी अधीर
आज याद करके
बचपन पाया
खुद को खुद के
बेहद करीब
ए दोस्त क्या थी
सोच
ना थी सोच और ना
ही थी चिंता
भय था बस स्कूल
का बस्ता
मस्ती का फाका जीवन
का सार
आज लगे बाकी सब बेकार
वह हरियाली हो
प्यारी बारिश
जिसमें भुट्टे
खाने की ख्वाहिश
हम जब थे हम
परतंत्र तब थे सच में स्वतंत्र
आज जब स्वतंत्र
हैं लेकिन सच में हैं परतंत्र
जीवन की उहापोह
की बारिश
बचपन का आनंद
वितान
छुपा खुद ही से
मेरा बचपन
मैं बचपन का
करता तब कहाँ सम्मान ||
द्वारा अमित
तिवारी ‘शून्य’
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