शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

बचपन के दिन भी अजीब थे द्वारा अमित तिवारी

 

चित्र आधारित रचना

अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी शून्य

बचपन के दिन भी अजीब थे

 

आज याद मुझे आई

मेरे बचपन के दिन की

थोड़ी सी आंख भर आई

 

फिर मन में एक विचार उठा

जीवन बड़ा होने को था फिर भी अधीर

आज याद करके बचपन पाया

खुद को खुद के बेहद करीब

ए दोस्त क्या थी सोच

ना थी सोच और ना ही थी चिंता

भय था बस स्कूल का बस्ता

मस्ती का फाका जीवन का सार

आज लगे बाकी सब बेकार

वह हरियाली हो प्यारी बारिश

जिसमें भुट्टे खाने की ख्वाहिश

हम जब थे हम परतंत्र तब थे सच में स्वतंत्र

आज जब स्वतंत्र हैं लेकिन सच में हैं परतंत्र

जीवन की उहापोह की बारिश

बचपन का आनंद वितान

छुपा खुद ही से मेरा बचपन

मैं बचपन का करता तब कहाँ सम्मान ||

 

द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

कोई टिप्पणी नहीं:

चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...