स्वरचित अतुकांत
कवित्त : “दुनियादारी”
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर , म.प्र.
कैसे छोड़ें दुनियादारी !!
ये दुनिया ही सबकी महतारी
बुनते-बनते सब दुनिया से
प्रेम द्वेष या बैर ही हों
निजता के कुछ जो भाव भी हैं
वो भी दुनियादारी के मोहताज़ सभी
हिंसा हिय की हो या कि
या की तन की सब इस दुनिया तक है
छोड़ी हमने जो यह दुनिया
तब ही रब को पाया है , पर
जब तक हैं इन झंझावातों में
कैसे छोड़ें दुनियादारी ??
कैसे छोड़ें दुनियादारी !!
यह दुनिया ही सबकी महतारी
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर , म. प्र.
19 .07.2021
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