सोमवार, 26 जुलाई 2021

बादल एक अतुकांत कवित्त द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

बादल

एक अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

बादल बरसें

पृथ्वी तरसे

जीवन फिर भी

प्यासा है |

 

मतवाले बादल

को देखे मन फिर

क्यों हर्षाता है |

 

खुश्बू बिखरी

अपनेपन की

जब धरती पर

बूँद गिरी है |

 

आज अचानक

इस धरती के

लक्ष्यों पर

संभ्रांत पड़ी है |

 

द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म. प्र.

26.07.2021

 

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...