बादल
एक अतुकांत कवित्त
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
बादल बरसें
पृथ्वी तरसे
जीवन फिर भी
प्यासा है |
मतवाले बादल
को देखे मन फिर
क्यों हर्षाता है |
खुश्बू बिखरी
अपनेपन की
जब धरती पर
बूँद गिरी है |
आज अचानक
इस धरती के
लक्ष्यों पर
संभ्रांत पड़ी है |
द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर , म. प्र.
26.07.2021
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