चित्र
आधारित रचना
द्वारा
अमित तिवारी ‘शून्य’
अतुकांत
भाव
शीर्षक
‘’बदला नेह का’’
क्यों लेते हैं
ऐसे बदला
जिनको हमने
सौंपा खुद को,
क्या पाया मैंने
बस यूं ही
उसकी बांहों में
खो करके के,
उसकी मीठी बात
अधर से मैने
मन में क्यों थी
कायांतर करके,
पर भ्रम जाल
तोड कर उसने
दिखलाया खुद का
वो असली चेहरा;
मलिन और मक्कार
कि जिस पर
प्रेम को होता
हो धिक्कार,
करता प्रेम देह से
केवल और ना
देता मन का
निश्चल प्यार,
होता आज जो कल
में जाना
तो जाती उस पल
को छोड़
जिस पल किया
इस पगली ने
उस श्वान की खातिर
निज गृह द्रोह
स्वरचित अतुकांत कवित्त
द्वारा अमित तिवारी “ शून्य”
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