शनिवार, 26 अगस्त 2017

सच हर किसी के मन  में कोई ना कोई चादर ओढ़े सिमटा सा सोता रहता है 
शायद हम उस,  
अपने मे सिमटे सच को बाहर आने भी नहीं देते 
कभी वक़्त नहीं मिलता  तो कभी शब्द नहीं मिलते 


आज जब अपने अंतर मन को तलाशा  
तो पाया 
की क्यों ना कुछ लिखा जाये 

आज सच शायद चीख चीख कर 
हमे कुछ कह रहा था 
हाँ एक सच 
जो लोगो की कोमल आस्थाओ को  ठग रहा था 
किसी संत के चोले में 
और लोगो के जेहन मे फिर भी उसे 

एक नायक सा ही रखा था 

जबकि  सत्य शायद सूर्य की उन पवित्र रश्मियाँ की तरह होता है 

पवन की तरह अनछुआ और सागर सा विशाल 

आज आडम्बर के लव चार्जर बाबा , 
जो ना राम ही  है ना रहीम 
और गुरुओं का मीत तो  हो ही नहीं सकता 

क्या नाम दे सकते  उसे ....जो दुनिया मैं स्वयं को स्वयं भू भगवान कहता है 

क्या भगवान 
का स्वरुप ऐसा होता है 
महज बहरूपिया 
जो सिर्फ स्वयं के पाप की जगजाहिर होने पर 
अपने गुंडों की मदद से लोगो की जान ले रहे हैं
शहर के शहर जल रहे हैं 

लोग अब भी उसे भगवान मान लोगो की जान ले रहे हैं 

क्या ऐसे पाखण्डी को बहिन बेटियों की लाज लूटने को भी गंभीर अपराध नहीं मानेगी आज की हमारी अंधी आस्था 
उसे न्याय व्यवस्था को उसके किये की सजा भी नहीं देंगे हम 

कहा गयी है हमारी इंसानियत
 है क्या यह सच्चा सौदा
अरे जाग जाओ अंधे आस्था के मारो
 मेरे प्यारो 
एक अपराधी के लिए पूरे देश और कानून को यू ....
.... में ना लो प्यार करो सबसे
 छोड़ साथ एक नराधम का बचा लो इस देश 
और आस्था को 
क्योकि भगवान बहुत बड़ा है 
अगर जला सकते हो तोः उस पापी के पाप के जला दो 
दे सकते हो  उन लाशो   के जीवन की दुहाई 

ना यू वतन जलाओ 
अगर  रूह है तोः होश में आओ 
अपने अंदर के सच को पहचान कर देश को बचा लो 
किसी पापी को भगवान ना बनाओ 
पापियों को भगवान मत बनाओ मेरे दोस्तों 
की 
भगवान फिर हमरी कोई मदद ना करे 

अरे सम्हल जाओ 

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...