“राग से
विराग”
स्वरचित
अतुकांत कविता
द्वारा
अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर
भारत
मुझे राग रास न आ सका
सो मुझे विरक्ति रूप में विराग ही
मिला
पाना तो चाहा था कृष्ण की देह को
न मन ही मिला न श्याम खुद मिले
जब लगाया मन को कृष्ण कथ्य में
देह का अनुराग खुद ही जल गया
अब न तन की ही चाह थी
न अधरम मधुरं का कोई ध्यान था
कर्त्तव्य पथ पर ही अब चलता रहा
मिला न तन ! न मिले शोक क्या ?
जब मिला राग को विराग करने का
कृष्णं वन्दे जगत गुरुम का भाव
हाँ में हो गया राग से तनिक विरक्त
सा
वैराग्य तप उर्धत्व सा -राग रहित
विराग जनित कृष्ण कथ्य
कर्मण्य सा कर्मण्य सा ||
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